हम्पी में विरुपाक्ष मंदिर के सामने एक बूढी औरत की छोटी सी दुकान थी जहाँ वह फूल माला आदि बेचा करती थी।
उसी थोड़ी बहुत कमाई से उसकी रोजी रोटी चलती थी। एक दिन चार यात्री मंदिर में दर्शन के लिए आये। उन्होंने उस बूढी औरत से कुछ फूल खरीदे। फूल खरीदते हुए उन्होंने उसे एक पोटली में बँधा अपना सामान देते हुए कहा कि वह इसे अपने पास रख ले और उन्हें तन ही लौटाये जब चारों एक साथ लेने आयें।
कुछ देर बाद उनमें से एक यात्री लौट कर आया और चिकनी चुपड़ी बातें करके बुढ़िया को बहका कर पोटली लेकर चला गया। जब बाकी के तीनों यात्री बुढ़िया से पोटली लेने आये तो उसने उन्हें बताया कि उनका चौथा मित्र वह पोटली लेकर जा चुका है।
उन तीनों यात्रियों ने बुढ़िया को बहुत डाँटा और उस राजदरबार में ले गये। न्याय की फरियाद करते हुए उन्होंने राजा कृष्णदेव राय को पूरी बात बतायी। राजा ने उनकी फरियाद ध्यानपूर्वक सुनी और तेनालीराम को यह मसला सुलझाने का इशारा किया। महाराज इस बुढ़िया को हमारे सामान का हर्जाना तो चुकाना ही पड़ेगा। तीनों मित्र एक साथ चिल्लाये। हर्जाना क्यों वह तुम्हें पोटली ही लौटा देगी।
तेनालीराम ने उन्हें शांत होने का इशारा करते हुए कहा शर्त वही है जो तुमने पोटली देने से पहले रखी थी। वह पोटली तुम तीनों को नहीं देगी। बात चारों को देने की हुई थी तो अपने चौथे मित्र को लेकर आओ और अपनी पोटली ले जाओ। तेनालीराम की बात सुनकर तीनों यात्रियों के मुंह उतर गये। उनकी ही बात से तेनाली ने उन्हें फंसा दिया था। अब वे कुछ कहने लायक नहीं रहे थे। अपना सा मुहं लेकर वे तीनों यात्री वहां से चलते बने।