गरमी का मौसम था। तेनालीराम से मिलने तंजौर के पास बसे छोटे से गाँव से एक दूर का रिश्तेदार आदिनारायण राव आने वाला था। वह तेनालीराम की पत्नी का रिश्तेदार था।

तेनालीराम की पत्नी मेहमान के स्वागत की तैयारियों में व्यस्त थी। उसने तेनालीराम को दो पके हुए आम छीलन को दिये और आदिनारायण के आने पर उसे शरबत के साथ देने को बताकर वह भीतर चली गयी। आम छीलते हुए तेनालीराम के मुँह में पानी भर आया। उससे रहा नहीं गया और उसने चुपचाप आम का एक टुकड़ा खा लिया। आम बेहद मीठा था। अब तो तेनाली से रुका नहीं जा रहा था।

एक एक करके उसने दोनों आम खा लिये। जब तश्तरी खाली हुई तब तेनाली को पता चला कि मेहमान के लिए तो आम बचा ही नहीं। तभी तेनाली की नजर आदिनारायण पर पड़ी जो उसके घर की ओर चला आ रहा था। तेनाली को एक तरकीब सूझी। उसने अंदर से जंग लगी एक छुरी उठायी और उसे लेकर अपनी पत्नी के पास गया और बोला मैं इस छुरी से आम नहीं छील पा रहा हूँ इसकी तो धार ही नहीं है। लाओ मुझे दो मैं अभी लगा लाती हूँ।

छुरी लेकर तेनाली की पत्नी वहीं बरामदे में रखे पत्थर पर छुरी तेज करने लगी। पत्नी को वहीं छोड़कर तेनालीराम मेहमान का स्वागत करने दरवाजे की ओर आ गया। संभाल के भाई जरा ध्यान से सुनो। मेरी पत्नी पागल हो चुकी है। भीतर मत आना। वो तुम्हारे कान काटने की तैयारी कर रही है देखो। अपनी पत्नी की तरफ इशारा करते हुए तेनालीराम बोला। क्या बोल रहे हो वो मेरे कान क्यों काटेगी आदिनारायण राव को यकीन नहीं हुआ तुम झूठ बोल रहे हो तेनाली।

मैं भला क्यों झूठ बोलूंगा। वो देखो खुद ही देख लो। वह तुम्हारे लिए ही इस छुरी को धार लगा रही है। तेनाली ने अपनी पत्नी की और ईशारा करते हुए कहा जो इसे सबसे बेखबर बरामदे में बैठी छुरी तेज कर रही थी। जब आदिनारायण राव ने तेनाली की पत्नी कक्को पूरे जोश से छुरी में धार लगाते देखा तो उसने आव देखा न ताव और सर पर पैर रख कर वहां से भाग लिया। अपनी हंसी रोकते हुए तेनालीराम वापिस अपनी पत्नी के पास गया और उसे बताया कि आदिनारायण राव आया था। और न जाने दोनों आम उठा कर भाग गया। क्या भाग गया।

तेनाली की पत्नी ने अचम्भे से पूछा लालची कहीं का। उसका दिमाग फिर गया है क्या दोनों आम ले गया हाँ हाँ। अपनी हंसी दबाते हुए तेनाली गंभीरता से बोला। उसकी ऐसी की तैसी। गुस्से में आग बबूला होकर हाथ में पकड़ी छुरी घुमाती हुई तेनाली की पत्नी आदिनारायण की पीछे चिल्लाते हुए भागी अरे रुक एक तो दे जा। भागते हुए आदिनारायण राव ने उसका चिल्लाना सुना तो वह समझा कि तेनाली की पत्नी छुरी लेकर उसके कान काटने को आ रही है और धमकी दे रही है कि वह दोनों नहीं तो एक कान तो दे ही जाये।

आदिनारायण ने अपनी भागने की गति बढ़ायी और ये जा वो जा। तेनाली एक तरफ खड़ा खड़ा तमाशा देखता रहा और मन ही मन खुश होता रहा कि अपनी होशियारी से उसने दोनों आमों का मजा ले लिया बल्कि उनका इल्जाम भी दूसरे के सिर डाल दिया। इसे कहते हैं चित भी मेरी पट भी मेरी।