झांसी के राज्य की बागडोर अब रानी के हाथ में आ गई थी। उसने युद्ध के लिए पूरी तैयारी कर ली थी और करती जा रही थी। उसे छोटे बड़े लगभग सभी का सहयोग प्राप्त था। वह अच्छी तरह जानती थी कि ईस्ट इंडिया कंपनी चुप नहीं बैठी रहेगी।
वह एक बार पूरी झांसी को रौंद डालेगी। हमारे सैनिकों ने उतावली से काम लिया। उन्हें अंग्रेज सैनिकों का बध नहीं करना चाहिए था। लेकिन अब जो हो गया है उसका फल तो भोगना ही पड़ेगा। मैं तैयार हूं। अंग्रेजों से मोर्चा लूंगी। मैं भारत मां की बेटी हूं। उस पर अपना खून बहा दूंगी। ऐसी विचारधाराएं रानी के मन में प्रायः आती रहतीं। वह अपने कर्त्तव्य के प्रति पूर्ण तथा जागरूक थी। सैन्य संगठन उसने बहुत अच्छा कर लिया था। यद्यपि उसके पास विशाल क्या केवल नाम मात्र की थोड़ी सी सेना थी लेकिन उसे उस पर बड़ा गर्व था। इसीलिए उसने बिठूर के नाना से मदद मांगी थी।
उसे उनके उत्तर की प्रतीक्षा थी मगर अभी कोई जवाब नहीं आया था। रानी को विश्वास था कि बिठूर से उसे सैनिक सहायता अवश्य मिलेगी। इसके अतिरिक्त उसने शक्ति को बढ़ा रखा था। युद्ध का प्रशिक्षण चलता ही रहता। सारे देश में क्रांति की लहर दौड़ गई थी। अंग्रेजों और भारतीयों में मारकाट चल रही थी। अंग्रेज सैनिक तो मुकाबिले पर आते परंतु स्त्री बच्चे अपनी जान की खैर मना रहे थे।
भारतीय परिवार भी सुरक्षित नहीं थे उन्हें भी जान माल का भय था। देश की स्थिति बहुत ही खराब हो रही थी। यह भी पता लगा कि ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपनी सेना में वृद्धि कर दी है। उसे उन राज्यों से खतरा बढ़ गया है जिन पर उसने जबरदस्ती कब्जा कर रखा है। झांसी की मिसाल सामने थी। रानी लक्ष्मीबाई ने झांसी के किले पर अधिकार कर लिया था और आजकल राज काज वही चला रही थी। इससे अंग्रेज भविष्य के लिए आगाह हो गए थे। रानी भी कम सशंकित नहीं थी। उसे लगता था कि राज्य फिर से संभालकर उसने अंग्रेजों को युद्ध के लिए निमंत्रण दिया है। उसमें जीवट थी।
वह अपने साथियों तथा सखियों से कहती कि युद्ध के लिए हर समय तैयार रहो। दुश्मन किसी भी समय आ सकता है। हमें आग में कूदना है और यह तभी संभव हो सकेगा जबकि प्राण हथेली पर रख लें। लोगों में रानी की वक्तृता सुनकर जोश आ जाता। वे अपनी महारानी के प्रति श्रद्धा से भर जाते। अभी रानी ईस्ट इंडिया कंपनी को ही अपना दुश्मन समझती लेकिन एक दिन पता चला कि सदाशिव राव होल्कर झांसी पर अधिकार करना चाहता है। वह बहुत दिनों से झांसी पर आंख लगाए था। अंग्रेजी सरकार के सामने उसने सिर उठाने का साहस नहीं किया।
लेकिन जब से रानी ने पुनः झांसी का शासन सूत्र अपने हाथ में लिया वह इसी प्रयत्न में रहने लगा कि किस प्रकार हमला करके मैं झांसी की गद्दी पर बैठ जाऊं। आखिर सदाशिव राव होल्कर ने षड्यंत्र रचकर झांसी पर धावा बोल दिया। रानी ने बड़ी बहादुरी से उसका मुकाबिला किया। होल्कर के दांत खट्टे हो गए। वह युद्ध भूमि से भाग गया। रानी को उसकी इस दशा पर बड़ी हंसी आई कि सदाशिव राव होल्कर अपने को झांसी का दावेदार बतलाता था। क्या इस बल पर राज्य करना चाहता था कि स्त्री से हार कर भाग गया। गदर की स्थिति सारे देश में उत्पन्न हो गई थी।
अंग्रेजों के अत्याचार से लोग ऊब चुके थे। सभी चाहते थे कि वे हमारे देश से चले जाएं। भारत का बच्चा बच्चा अंग्रेजों के खिलाफ था। शांति का लोप हो चुका था। सर्वत्र अशांति फैल रही थी। अंग्रेज विद्रोह को बलपूर्वक दबाने का प्रयत्न कर रहे थे लेकिन क्रांति जोरों के साथ भड़क उठी थी। उस पर काबू पाना उनके वश से बाहर हो रहा था। वे एक जगह के विद्रोह को दबाते तो दूसरी तरफ आग सुलग उठती। छोटे मोटे सभी राज्य ईस्ट इंडिया कंपनी से अत्यधिक नाराज थे। वे सब बड़ी तेजी के साथ संगठन के सूत्र में बंधने लगे। हां कुछ ऐसे भी गद्दार थे जो कंपनी सरकार से जा मिले। रानी ऐसे गद्दारों से हमेशा सावधान रहती। उसने अपने सैनिकों में आत्मविश्वास की भावना भर दी थी। सैनिक ही नहीं जनता भी देश प्रेम की दीवानी हो रही थी। गदर की आग सारे देश में फैल गई थी।