एक बालक अभी पुरे दो साल का भी नहीं हुआ था की उसके पिता की मृत्यु हो गयी। ऐसी कठिन परिस्थिति में उसकी मां उसे लेकर अपने मायके में रहने लगी। सभी उसे नन्हा कहकर पुकारते थे। छोटे से कद का बालक शारीरिक रूप से दुर्बल था किन्तु मानसिक रूप से अत्यंत मेधावी। उसे जो कुछ भी कहा या सिखाया जाता वह बड़े मनोयोग से उसे ग्रहण करता था।

धीरे धीरे दिन बीतते गए और बालक छह वर्ष का हो गया। एक बार वह अपने कुछ मित्रों के साथ मिलकर किसी बाग़ में फूल तोड़ने पहुंचा। वह बालक और उसके सभी फल तोड़ने लगे। तभी माली आ गया।

उस बालक के सभी मित्र भाग गए लेकिन वह माली की पकड़ में आ गया। माली ने उसे डंडे से पीटना शुरू किया। नन्हा मार खाता रहा और फिर धीमी आवाज में माली से बोला मेरे पिता इस दुनिया में नहीं हैं इसलिए तुम मुझे इस तरह मार रहे हो बालक की बात सुनकर माली का हाथ रुक गया। माली शांत होकर बोला बेटा तुम्हारे पिता के न होने से तुम्हारी जिम्मेवारी और अधिक बढ़ जाती है कि तुम कोई गलत काम नहीं करो।

यह सुनकर नन्हा बालक फूट फूट कर रो पड़ा और फिर कभी गलत काम न करने का संकल्प लिया। यही नन्हा बालक बड़ा होकर लाल बहादुर शास्त्री के नाम से वख्यात हुआ और प्रधानमंत्री के रूप में अपने गुण व व्यवहार से सर्वत्र प्रशंसा पाई। कथा का सार यह है कि मां बाप के अमूल्य मार्गदर्शन के आभाव की स्थिति में और अधिक जिम्मेदार बनकर आत्मविकास करना चाहिए।