एक बार पार्वती जी जब स्नान करने जाने लगीं तो उन्होंने अपने पुत्र गणेश से कहा बेटा मैं नहाने जा रही हूँ। तुम द्वार पर बैठे रहो जब तक मैं नहा कर वापस न आ जाऊं तुम यहीं बैठे रहना और किसी को भी अंदर न आने देना।

एक आज्ञाकारी बालक की भाँति गणेश द्वार पर बैठ गए। अभी पार्वती नहा ही रही थी कि शिव अपने गणॊं के साथ आए और घर में जाने लगे तो गणेश ने उन्हें रोक कर कहा अभी आप लोग बाहर प्रतीक्षा करें। माता पार्वती अंदर स्नान कर रही हैं। जब वे स्नान कर बाहर आ जाएं तब आप अंदर जाना। शिव गणेश की इस बात की उपेक्षा कर जब अंदर जाने लगे तो गणेश ने बलपूर्वक प्रतिरोध किया तथा अंदर नहीं जाने दिया।

इस पर शिव को क्रोध आ गया और उन्होंने अपने त्रिशूल से गणेश का सिर काट दिया। इतने में पार्वती स्नान कर बाहर निकलीं और गणेश की ऎसी दशा देखी तो क्रोध से उनकी संहारक शक्तियां जाग्रत हो उठीं। उसी समय देवर्षि नारद नारायण नारायण करते वहाँ से गुजरे। उन्होंने माता पार्वती से प्रार्थना की माँ जगदम्बे अपनी संहारक शक्ति समेटो।

आपके पूत्र को जीवित कर दिया जाएगा। फिर उन्होंने शिव से कहा प्रभु आदि शक्ति जगदम्बा के क्रोध की शांति के लिए गणेश को जीवन देने के लिए कुछ कीजिए। नारद जी की बात सुनकर शिव ने एक गज शावक का सिर काट कर तत्काल गणेश के धड़ से जोड़ दिया।

अब धड़ पर हाथी का सिर जुड़ जाने से गणेश जीवित हो गए और उनका नाम गजानन पड़ गया। जब पार्वती ने पुत्र का यह रूप देखा तो नारद जी से कहा देवर्षि मेरे बेटे का यह रूप इसे कौन सा देवत्व प्रदान करेगा देवों के बीच में गजमुख से इसकी क्या स्थिति होगी कुछ ऎसी व्यवस्था करो कि सब देवों से पूर्व गणेश की पूजा हो तभी मैं अपनी संहारक शक्ति समेटूंगी। नारद ने कहा माँ भगवती। इसकी भी व्यवस्था करता हूँ।

आप पहले शांत हो जाइए। नारद के कहने पर पार्वती ने अपनी संहारक शक्तियां समेट ली। जब सब शांत हो गया तो नारद जी ने कहा अभी गणेश की अग्रपूजा की घोषणा कर देने से अन्य देवता नाराज हो जाएंगे। अतः किसी प्रतियोगिता के द्वारा सब देवों के आदि देव ब्रह्मा जी के सामने इसका निर्णय किया जाएगा। पार्वती ने नारद के इस सुझाव को स्वीकार कर लिया। ब्रह्मा जी के सामने यह प्रस्ताव रखा गया कि इतने सारे देवी देवताओं में सर्वप्रथम किसकी पूजा की जाए कोई भी शुभ कार्य करने से पहले किस देवता की प्रतिष्ठा की जाए इसकी कुछ व्यवस्था कीजिए। देवताओं को भी यह प्रस्ताव पसंद आया।

सबने कहा हाँ ऎसा हो जाए तो ठीक होगा लेकिन कोई भी देवी देवता इस बात को लेकर रुष्ट नहीं होगा कि मानव ने पहले मेरी पूजा नहीं की। ब्रह्मा जी ने कहा तुम्हारा प्रस्ताव उचित है नारद जी तुमने ऎसी समस्या रखी है तो तुम ही कोई ऎसी योजना बताओ कि जिससे निर्णय हो सके कि किस देव की अग्रपूजा की जाए नारद ने कहा तात मेरे विचार से तो एक प्रतियोगिता का आयोजन किया जाए।

देवी देवता अपने अपने वाहन पर सवार होकर इस पृथ्वी की परिक्रमा पूरी कर सबसे पहले आप के पास आ जाए वही अग्रपूजा का अधिकारी हो। देवर्षि नारद के इस सुझाव को सबने स्वीकार किया। ब्रह्मा जी ने भी इसे स्वीकृति दे दी। सब देवता अपने अपने वाहनों पर सवार होकर पृथ्वी की परिक्रमा करने निकल पड़े। गणेश जी अपने चूहे पर सवार हुए। वे ही सबसे पीछे रहे। उनकी सवारी चूहा अन्य देवताओं की सवारियों का क्या मुकाबला करता पर प्रतियोगिता में भाग तो लेना ही था। नारद गणेश का उपक्रम देख रहे थे तथा विचार कर रहे थे तथा विचार कर रहे थे कि गणेश तो शरीर में वैसे भी लम्बोदर भारी भरकम ऊपर से सिर भी हाथी का है। इनकी सवारी भी विचित्र चूहा जैसा छोटा सा जीव। कैसे पृथ्वी की परिक्रमा करके सफल होंगे।

उधर माता पार्वती को वचन दिया है कि उनके पुत्र गणेश की अग्रपूजा होगी। ऎसा सोचते हुए उन्हें एक उपाय सूझा वे गणेश से बोले गणेश जी उन बड़े बड़े देवताओं और उनके भारी भरकम वाहनों के बीच में आप अपने भारी शरीर से इस छोटे से चूहे पर बैठकर पृथ्वी की परिक्रमा तो संभव है कर लो पर सर्वप्रथम आने के बारे में भी कुछ सोचा है गणेश ने कहा मेरे पास जो वाहन है मैं तो उसी का प्रयोग करूंगा। प्रथम आऊं या न आऊं। नारद ने कहा करो अपने इसी वाहन का प्रयोग करो पर बुद्धि के साथ। देखो यह सारा विश्व ब्रह्माण्ड प्रकृति और पुरुष में समाया है। और यह सब कुछ राम में रमण कर रहा है।

ब्रह्माण्ड राममय है। इसी नाम की परिक्रमा यह भूमण डल कर रहा है अतः तुम इसी नाम की परिक्रमा कर लो। तुम्हें पृथ्वी ही नहीं समस्त ब्रह्माण्ड की परिक्रमा का फल मिलेगा। गणेश ने कहा मुनिवर आपका यह विचार उत्तम है। मैं रामनाम की परिक्रमा करूंगा। यह कह कर उन्होंने भूमि पर राम राम लिखा और अपने मूषक पर बैठ कर उस नाम की तीन बार परिक्रमा करके ब्रह्मा के समक्ष जा खड़े हुए। ब्रह्मा जी ने देखा कि अभी किसी भी देवता का पता नहीं और गणेश ने परिक्रमा पूरी भी कर ली। उन्हें आश्चर्य तो हुआ पर बोले कुछ नहीं।

बाद में जब सारे देवता परिक्रमा करके आए तो ब्रह्मा जी ने कहा देवों आप लोग एक एक कर आते रहे पर यहाँ तो गजानन सबसे पहले मेरे पास पहुँचे इसलिए अग्रपूजा का अधिकार इन्हें ही मिलना चाहिए। अन्य देवों ने आपत्ति की कि प्रजापति यह कैसे हो सकता है गणेश भला इस चूहे पर बैठकर सारी पृथ्वी की परिक्रमा कर कैसे सबसे पहले आपके पास आ सकते हैं लगता है ये परिक्रमा करने गए ही नहीं होंगे प्रारम्भ से यहीं बैठे होंगे।

जब देवों ने उसे असत्य माना तो नारद बोले हे देवो यह सत्य है। आप लोग तो भौतिक और स्थूल की परिक्रमा करते रहे पर गणेश ने तो उसकी परिक्रमा की जिसमें यह भूमण्डल ही नहीं बल्कि त्रैलोक्य ही समाया है। जिसमें सारा विश्व ब्रह्माण्ड रमण कर रहा है उस राम नाम की तीन बार परिक्रमा कर ये त्रैलोक्य की परिक्रमा कर सबसे पहले पहुँचने वाले हो गए हैं।

इसलिए इन्हें विजयी घोषित किया जाता है। ये प्रथम अग्रपूजा के अधिकारी हैं। यह कहकर नारद नारायण नारायण कहते हुए देवलोक को चल दिए।