एक बार ब्रह्मा जी अपने जन्मदिन पर अपने द्वारा बनाई गई सृष्टि के बारे में सोच रहे थे। उन्हें लग रहा था कि उन्होंने सृष्टि का विस्तार करके भूल की है। पशु तो आपस में लड़ते ही हैं देव और असुर भी इससे मुक्त नहीं हैं। कई बार तो सुर और असुरों का युद्ध बहुत ही भयंकर होता है।
वह इसी सोच में रहते थे कि किस प्रकार इन लोगों को सही पाठ पढाया जाए। एक बार की बात है कि ब्रह्मा जी भगवान विष्णु का ध्यान कर रहे थे। उनका जन्मदिन निकट आ रहा था। वे चाहते थे कि अपना जन्मदिन वह भगवान के चिंतन भजन में मग्न होकर मनाएं। आखिर उनका जन्मदिन आया। वह प्रातःकाल उठ कर भजन पूजन करने लगे। भजन पूजन के बाद वह बैठकर संसार के बारे में सोच रहे थे। तभी उन्हें लगा कि चारों ओर से जय जयकार की ध्वनि आ रही है। उनके पुत्र नारद जी वीणा बजाते हुए और हरि नाम का गायन करते हुए आ पहुँचे।
ब्रह्मा जी ने पूछा वत्स नारद यह कोलाहल कैसा किसका स्वर सुनाई पड़ रहा है लोग इधर ही बढे आ रहे हैं। ये कौन लोग हैं जो ब्रह्मलोक में धावा बोलने आ रहे हैं यहाँ से खरीदे उचित मूल्य में नारद जी ने कहा पिताजी क्या आपको पता नहीं कि आज आपका जन्मदिन है जन्मदिन मनाने के लिए सुर असुर मानव और पशु योनि के प्राणी भारी संख्या में आ रहे हैं।
वे आपकी जय जयकार भी कर रहे हैं। नारद जी का कथन सुनकर ब्रह्मा जी सोच में पड़ गए अब क्या किया जाए ये लोग तो शांत वातावरण को अशांत करने आ रहे हैं। ऎसे कोलाहल में मैं भगवान का चिंतन भी नहीं कर सकता। यह सोच कर उन्हेंने नारद से कहा वीणापाणि इन लोगों को रोको। समझाओ सबको यहाँ मत आने दो। यदि ये सभी लोग यहाँ आ गए तो ब्रह्मलोक की शांति भंग हो जाएगी। और सुनो पशु योनि के जीवों से कहो कि वे जाएं। हम उन पर बहुत प्रसन्न हैं। वे जहाँ चाहे रहें और आनन्द मनाएं। सुर असुर और मानव बुद्धिमान हैं अच्छा बुरा समझते हैं। इसलिए उनके पांच पांच लोगों को बुला लो।
हाँ नारद एक बात का ध्यान रखना कि सभी लोग एक साथ न आएं। अगर सभी प्रतिनिधि एक साथ आ गए तो परस्पर झगड़ने लगेंगे। सबसे पहले सुर समुदाय का प्रतिनिधि आना चाहिए। वे जब चले जाएं तो असुरों के प्रतिनिध को आने देना। उसके बाद मनुष्यों के प्रतिनिधि से मिलूंगा। ब्रह्मा जी की बात सुनकर नारद जी ने कहा पिताजी ऎसा ही होगा। सबसे पहले देवताओं के प्रतिनिधि ब्रह्मा जी के पास गए और बोले प्रजावत्सल आज आपका जन्मदिन है। हम सब देवता आपको बधाई देने आए हैं। आपसे प्रार्थना है कि हमें कुछ ऎसा उपदेश दें। जिससे हमारा जीवन धन्य हो।
ब्रह्मा जी ने देवताओं की बात सुनी। फिर आँख बंद करके कुछ सोचा। उसके बाद कहा जाओ द मय जीवन बिताओ। इसके बाद असुरों की बारी आई। असुरों ने भी ब्रह्मा जी का गुणगान करके कहा पितामह हमें कुछ भी ऎसा आशीर्वाद दें कि हमारा कुल उन्नति करे। हम लोग सुख से रहें। ब्रह्मा जी ने उन्हें भी द की सीख दी। अब मानवों की बारी थी। नारद जी ने मानवों के प्रतिनिधि से कहा जाओ ब्रह्मा जी से तुम लोग भी आशीर्वाद ले लो। मनुष्यों का प्रतिनिधिमंडल भी ब्रह्मा जी के सम्मुख उपस्थित हुआ। प्रार्थना की उनका भी कुछ इस प्रकार मार्गदर्शन किया जाए कि धरती पर मानव प्रसन्नतापूर्वक रह सके।
ब्रह्मलोक से सुर असुर और मानव द का आशीर्वाद लेकर आए लेकिन उनकी समझ में न आया कि ब्रह्मा जी ने सभी को द का ही आशीर्वाद क्यों दिया बल दे सकते थे बुद्धि का आशिर्वाद दे सकते थे और संगठित होकर जीवन बिताने की समझ दे सकते थे। वे सब यह सोच ही रहे थे कि नारद जी वहाँ आ पहुँचे। सब लोगों ने अपनी शंका नारद जी के सामने रखी। कहा देवर्षि अब हमें क्या करना चाहिए नारद जी ने देवताओं से कहा परमात्मा ने तुम्हें योग्य बनाया है।
सब प्रकार का सुख तुम्हें दिया है इसलिए दर्प छोड़ो अभिमान न करे। अब ससुरों ने पूछा कि हमारे लिए क्या आज्ञा है तब नारद जी ने कहा तुम लोगों में बल है। तुमने विज्ञान का सहारा लेकर प्रकृति पर विजय प्राप्त की है इसलिए तुम लोगों के लिए द का अर्थ दया है। किसी को व्यर्थ न सताना। सब पर दया करना सबको फूलने फलने का अवसर देना। अब बारी मनुष्यों की आई। नारद जी ने उन्हें कहा ब्रह्मा जी का कहना है कि तुम लोग दानमय जीवन बिताओ।
जो कुछ अर्जित करो उसमें से दसवां भाग किसी निर्धन अपाहिज या समाज के उपेक्षित लोगों के लिए निकाल दो। अगर तुम्हारे पास पैसा है बल है तो लोगों की भलाई के लिए तालाब खुदवाओ धर्मशाला बनवाओ जहाँ पथिक विश्राम कर सकें। इस प्रकार ब्रह्मा जी ने देव असुर और मानव सभी को द का वरदान देकर जन्मदिन मनाया।