सुमंत खाली रथ लेकर अयोध्या पहुँचे । लोग दोड दौड॒कर पूछते मंत्रीवर राम कहाँ है राम लक्ष्मण और सीता को कहाँ छोड़ आए सुमंत नीची गर्दन किए बिना बोले ही राजमहल की ओर बढ़ते गए । उन्हें अकेला आते देखकर रानियाँ भी जोर जोर से रोने लगीं । राजा ने भी पूछा बेटा राम कहाँ है पुत्री सीता न जाने कैसे रहती होगी राजा अनाथ की तरह रोने लगे । सुमंत ने भी रोते रोते सब हाल कह सुनाया ।
कौशल्या छाती पीट पीटकर रोने लगी । राजा दशरथ ने अपने अपराध के लिए कौशल्या से क्षमा माँगी । राम को अयोध्या से गए छह दिन हो गए थे । तब से राजा दशरथ भी यों ही पड़े थे। आधी रात होने को आई । तब उनका श्रवण कुमार के पिता द्वारा दिए गए शाप की याद आई । उन्होंने कौशल्या से कहा एक बात मेंने तुमको अब तक नहीं बताई । आज बताता हूँ । हमारे तुम्हारे विवाह के पहले की घटना है एक बार वर्षा ऋतु में सरयू नदी के किनारे मैं शिकार खेलने गया । उन दिनों शब्दबेधी बाण चलाने का मुझे बड़ा शौक था । अँधेरा हो चला था ।
एकाएक नदी में से हाथी के पानी पीने की सी आवाज आई । उसी को लक्ष्य करके मैं बाण चला दिया । तभी मनुष्य के तड़पने की आवाज आईं। मैं घबराया हुआ वहाँ पहुँचा तो देखा कि एक तपस्वी बालक घायल हुआ कराह रहा है । पास में एक घड़ा भी पड़ा है । वह रोते रोते बोला मेरे अंधे माँ बाप प्यासे उस आश्रम मैं बैठे मेरी राह देख रहे होंगे । कृपा कर उनके लिए पानी लेते जाइए इतना कहकर उसने दम तोड़ दिया ।
मैं जल लेकर आश्रम में गया । मेरी आहट पाकर उसके बूढ़े बाप बोले बेटा श्रवण इतनी देर कहाँ लगाई मेरी जीभ लड्खडा रही थी । में डरते डरते बोला में श्रवणकुमार नहीं हूँ अयोध्या का राजा दशरथ हूँ । गलती से मेरा बाण उसे लग गया है और अब वह इस संसार में नहीं है । यह सुनकर वे करुण विलाप करने लगे । मेरे साथ वे नदी के तट तक आए उन्होंने पुत्र को जलांजलि दी और मुझे शाप दिया “हे राजन् पुत्र के वियोग में जैसे आज हम मर रहे हैं बैसे ही तड़प तड़प कर तुम भी मरोगे और उन दोनों ने उसी समय प्राण त्याग दिए । कौशल्या लगता है उस शाप के सच होने का समय अब आ गया है ।
मेरे प्राण मानो कोई खींच रहा है । हाय में मरते समय प्यारे पुत्र का मुँह भी न देख सका । में बड़ा अभागा हूँ । अपने किए का फल भोग रहा हूँ । हा रा हा राम कहते हुए दशरथ ने प्राण त्याग दिए । रानियाँ राजा के बलपौरुष का वर्णन करती हुई करुण स्वर में विलाप करने लगीं । मंत्रियों ने राजा के शव को तेल से भरे कड़ाह में रखवा दिया । फिर मंत्रिपरिषद् ने विचार करके भरत को बुलवाने का निश्चय किया हवा की गति से चलने वाले घोड़ों पर दूत भेजे गए । उनसे कह दिया गया था कि कैकेय देश में पहुँचकर केवल इतना कहें कि आवश्यक कार्यवश गुरु ने भरत को तुरंत बुलवाया है ।
ननिहाल में भरत का मन उचट रहा था तरह तरह की बातें उनके मन में उठती थीं । जैसे ही उनको दूत का संदेश मिला वे नाना मामा से विदा लेकर शत्रुध्न के साथ अयोध्या को चल पड़े। नदी पर्वत लाँघते हुए आठवें दिन वे अयोध्या आ पहुँचे । नगर में चारों ओर सन्नाटा था । बाजार बंद थे । नगरवासी भरत को देखकर मुँह फेर लेते थे । भरत घबराए हुए अपनी माता के महल में गए और ननिहाल का कुशल समाचार बताकर पिता और भाई राम के बारे में पूछने लगे । कैकेयी ने हँसकर कहा तुम्हारे पिता तो स्वर्ग चले गए । बे इस पृथ्वी का सुख भोग चुके थे । उनके बारे में चिन्ता न करो ।
भरत फूट फूटकर रोने लगे । फिर उन्होंने पूछा “ भाई राम कहाँ हैं कैकेयी ने हँस हँसकर अपने वरदान तथा राम लक्ष्मण और सीता के वन जाने की सारी बातें कह सुनाईं । वह बोली बेटा भरत मैंने तुम्हारे लिए ही सब कुछ किया है । अब चिन्ता छोड़कर अयोध्या की राज्य लक्ष्मी का भोग करो । भरत को माता पर बड़ा रोष आया । वे बॉले पापिनी तूने यह क्या किया इक्ष्वाकु वंश की तूने नाक काट दी ऐसा ही करना था तो मुझे जन्मते ही क्यों न मार डाला ।
इस बीच राज्य के मंत्री भी वहाँ आ गए थे उनके सामने भी उन्होंने केकेयी को बहुत भला बुरा कहा । वे बोले “ मंत्रियो आप भी सुन लें मेरी माँ ने जो कुछ किया है उसमें मेरा कोई हाथ नहीं में शपथपूर्वक कहता हूँ । यह कहकर भरत तुरंत ही माता कौशल्या के पास चल दिए और उनसे लिपटकर बच्चे की तरह बिलखकर रोने लगे । माता ने उन्हें धीरज बँधाया । फिर वे भी पछाड़ खाकर भूमि पर गिर पड़ीं। भरत ने माता को भी तरह तरह से सांत्वना दी रातभर भरत पिता और भाई राम की याद करके रोते रहे ।
उन्होंने माता के सामने सैकड़ों तरह की सौगंध खाईं और कहा कि जो पाप कर्म कैकेयी ने किया है उसका मझे पता भी नहीं । जिसकी सम्मति से यह हुआ हो उसकी बुरी गति हो । सवेरा होने पर राजा दशरथ का चंदन की चिता पर दाह संस्कार किया गया । भरतं ने सब अंतिम संस्कार गुरु के बताए अनुसार विधिवत् किया । अगले दिन मंत्रियों और नगरवासियों को बुलाकर भरत ने कहा अयोध्या का राज्य सबसे बड़े भाई राम का है। हम आप सभी उन्हीं के हैं। राम को लौटा लाने के लिए मैं कल ही चित्रकूट जाऊँगा । आप भी चलें । माताएँ भी चलेंगी । प्रजा भी चलेगी और साथ में चतुरंशिणी सेना भी रहेगी । गुरु बशिष्ठ जी से भी मैं चलने के लिए प्रार्थना करूँगा ।