एक स्कूल की छठी कक्षा में एक दिन टीचर पर्यायवाची पढ़ा रही थी। पानी के पर्यायवाची हैं नीर जीवन और जल सभी बच्चे एक साथ बोले। सुंदर के पर्यायवाची हैं रमणीय मनोहर खूबसूरत सभी बच्चों ने कहा। वो संजयदत्त और उर्मिला वाली एक बच्चा फुसफुसाया। श ससससस चुप टीचर सुन लेंगी।
दूसरा बोला। टीचर ने आगे पूछा असुंदर के पर्यायवाची हैं कुरूप भद्दा और सभी बच्चे चुप हो गए। तभी एक कोने से आवाज आई कोमल त्यागी अचानक सभी की नजरें कोमल की ओर गई। उसे ऐसा लगा जैसे वह शर्म के कारण मर ही जाएगी। टीचर ने बच्चों को खूब डाँटा पर कोमल के लिए यह कोई नई बात नहीं थी। वह पढ़ने में काफी तेज थी। सबसे पहले अपना काम पूरा कर लेती थी।
यहाँ तक की उसके क्लास के बच्चे कभी कभी उसकी नोटबुक लेकर काम पूरा करते थे। वह भी सभी बातों को भुलाकर हमेशा सबकी मदद करती थी। लेकिन जब कभी ऐसा कुछ हो जाता था तो उसे बहुत दुख होता था। जब वह बहुत छोटी थी तब एक बार वह और उसकी माँ आग में फँस गए थे। उसी समय उसका चेहरा एक ओर से जल गया था। यही कारण था कि कोई भी उसके पास नहीं आना चाहता था। उसकी ओर देखकर सब दया दिखाते थे।
लेकिन ऐसा कोई नहीं था जिसे वह अपना दोस्त कह सके। आज फिर कोमल बहुत उदास थी। घर आकर अपनी पेंसिल कागज और रंग लेकर बैठ गई। कोमल को चित्र बनाना बहुत अच्छा लगता था। वह हमेशा सुंदर चित्र बनाती थी। उसके चित्रों में चहचहाते हुए पक्षी होते थे सूरज की रोशनी होती थी। छोटे छोटे प्यारे घर होते थे। कोमल को चित्रकला के लिए की पुरस्कार मिल चुके थे।
लेकिन आज वह एक बहुत ही बदसूरत और भद्दा प्राणी बनाना चाहती थी। ऐसा एक जीव जो कि उससे ज्यादा कुरूप हो। और फिर उसने एक चित्र बनाया। एक ऐसा जीव का चित्र जिसका शरीर मगरमच्छ का था सर उल्लू का था और पैर गिद्ध के थे नुकीले नाखून थे और बड़े बड़े डरावने पंख थे। उसने इसे नाम दिया कुरूप। वह चित्र को अपने बिस्तर के सामने वाली दीवार पर लगाकर सो गई।
थोड़ी देर बाद वह चौंककर उठी। उसने देखा सामने के चित्र से कुरूप गायब था। तभी उसने एक धीमी सी मीठी आवाज सुनी कोमल मैं यहां हूँ। उसने देखा सामने की खिड़की से कुरूप झाँक रहा था। कोमल ने आश्चर्य से पूछा तुम वहाँ क्या कर रहे तुम्हें मुझको देखर डर नहीं लगता कुरूप ने पूछा। तब कोमल बोली नहीं मैं कैसे डर सकती हूँ मैं तो खुद ही कितनी कुरूप हूँ। कुरूप बोला मैं तुम्हें एक जगह ले जाना चाहता हूँ तुम्हें वहाँ अच्छा लगेगा। लेकिन मैं कैसे आऊँगी मेरी पीठ पर बैठ जाओ। और कोमल कुरूप की पीठ पर बैठ गई। वे उड़कर एक सुंदर नदी के किनारे पहुँचे।
वहाँ सब कुछ बहुत सुखकर था। ठंडी हवा चल रही थी। हरियाली थी। पक्षी चहचहा रहे थे। सब कुछ उसके सुंदर चित्रों जैसा ही था। तभी उसे याद आया कि कुछ दिन पहले उसने ठीक ऐसा ही एक चित्र बनाया था। अपने चित्र की दुनिया में पहुँचकर वह बहुत खुश थी। कुरूप ने उसे बताया यह वह जगह है जहाँ केवल वे लोग ही आ सकते हैं जो मन से सुंदर हों जो सबका भला चाहते हों और जिनके मन में हमेशा अच्छे विचार आते हों। और तभी कोमल चौंककर जाग गई। उसने देखा कि उसकी माँ उसे उठा रही थी कुरूप वापिस तस्वीर में आ गया था।
कितना अच्छा सपना था उसने सोचा। उसे आईने में दिखी अपनी तस्वीर अच्छी तरह याद थी। और उसके बाद उसने अपने आपको कभी असुंदर नहीं समझा।